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प्रधान संपादक:- श्री दिनेश शर्मा
मुख्य संपादक:- श्री पीयूष शर्मा

 *जिसके मन में भगवान की पूजा अर्चना, स्वाध्याय आदि करने की भावना न हो वह व्यक्ति अमृत चखते हुए भी विषपान कर रहे*  — *मुनिश्री निष्प्रह सागर महाराज*  *गल्ला व्यापारी संजय जैन चातुर्मास समिति के मुख्य संयोजक बने, समाज ने बहुमान किया* 

   *जिसके मन में भगवान की पूजा अर्चना, स्वाध्याय आदि करने की भावना न हो वह व्यक्ति अमृत चखते हुए भी विषपान कर रहे*  — *मुनिश्री निष्प्रह सागर महाराज*
*गल्ला व्यापारी संजय जैन चातुर्मास समिति के मुख्य संयोजक बने, समाज ने बहुमान किया*
*दिनेश शर्मा आष्टा हलचल*
 आष्टा।अवसर चुकने के पश्चात बहुत अखरती है।जो अपने कर्तव्यों का पालन नहीं कर पाते हैं, वह सिर्फ पश्चाताप करते हैं। समझदार समय पर निर्णय लेकर अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं। अच्छे लोग अवसर का इंतजार नहीं करते वह अवसर बनाते हैं। जिसके मन में भगवान की पूजा अर्चना, स्वाध्याय आदि करने की भावना न हो वह व्यक्ति अमृत चखते हुए भी विषपान कर रहे हैं।
      उक्त बातें श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर चातुर्मास हेतु विराजित पूज्य गुरुदेव संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर महाराज एवं नवाचार्य समय सागर महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनिश्री निष्प्रह सागर महाराज ने कही।आज धर्म सभा के दौरान गल्ला व्यापारी संजय छीतरमल जैन को चातुर्मास समिति का मुख्य संयोजक बनने पर उनका एवं परिवार का समाज के संरक्षक दिलीप सेठी, कैलाशचंद जैन, अध्यक्ष आनंद पोरवाल, महामंत्री कैलाश जैन चित्रलोक, श्रीमती श्वेता जैन बुलबुल, श्रीमती ज्योति पोरवाल, श्रीमती मोनिका जैन , हिमानी जैन पोरवाल ने शाल ओढ़ाकर श्रीफल भेंटकर सम्मानित किया।
मुनिश्री ने कहा मंदिर और धर्म की क्रिया में मन लगाना चाहिए,मन नहीं लगता है तो दुकानदारी कर धन कमाओं और जीएसटी भरों। अठारह दोषों से रहित भगवान की मूर्ति है। उन्हें देखकर आपके मन में अलग ही भाव आते हैं और मन में वैसा ही प्रतिबिम्ब आता है। आचार्य श्री कहते हैं विनय पैर छूने से नहीं, बल्कि आपके चेहरे पर मुस्कान हो और अलग ही भाव होते हैं। गिफ्ट बड़ा है या छोटा वह महत्व नहीं, महत्व गिफ्ट पाकर चेहरे पर प्रसन्नता आती है वह है। सबसे चंचल मन बंदर का होता है, लेकिन एक बंदर आचार्य भगवंत विद्यासागर महाराज का बड़ी तन्मयता के साथ आहार देख रहा था,जबकि वहां उपस्थित श्रद्धालु जन बातचीत कर रहे थे। अच्छे काम की अनुमोदना करें, अच्छे काम में विध्न नहीं डाले। कभी भी इर्ष्या के भाव नहीं आना चाहिए। हमारा धर्म कहता क्या है और होता क्या है ,यह देखें। गृहस्थ के कर्तव्य से वंचित न करें। भारतीय श्रमण संस्कृति के अनुसार शुद्ध भोजन बना कर पहली रोटी गाय की निकालकर गाय को खिलाएं। अतिथि को भोजन कराएं।धर्म विरुद्ध आचरण नहीं फैलाएं। भारतीय संस्कृति में पहले सभी जाति, वर्ग के लोग शुद्ध भोजन करते थे। सनातन धर्म व सभी जाति के लोग छानकर पानी उपयोग करते हैं।बच्चे जो देखते हैं उसी का अनुशरण करते हैं। उन्हें साधु की चर्या की जानकारी नहीं होती है। नवधा भक्ति पूरी होना चाहिए। चमत्कार तो आपकी आस्था और भक्ति में होती है। जटायु पक्षी को मोक्ष प्राप्त हुआ उसने चारित्र रिद्धि धारी तीन मुनिश्री के भाव से आहार देखा था। दान का अधिकार, सौभाग्य आपको मिला है,दया से सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
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