हम तो कहेंगे —!
दिनेश शर्मा आष्टा हलचल
में ओर मियां नट्टू आज नगरपालिका में तफरी करने क्या गए, वहां तो
नगरपालिका भ्रष्टाचार रूपी जादू का वह पिटारा नजर आई, जिसमें एक साथ कई चमत्कारी करतब दिखाई दिए।
ओर जिम्मेदारों की ओर जब चचा ने देखा तो बड़े निश्चिंत दिखाई दिए , जैसे पूरी नपा एकदम पाक साफ होकर ईमानदारी का परचम लहरा रही हो ।
यह नजर बंद का खेल हमे भी रोचक लगा ,ओर हमने भी प्रयास किया और समझने की कोशिश करी कि जिम्मेदार आम जनता की नजर कैसे बांधते हे!ओर हमारा अंदाज सही भी निकला , क्योंकि शहर में करोड़ों के निर्माण कार्य जब होते होते ही खत्म जैसे हो रहे हे ओर जनता मोन धारण किए हुए हे , तो नजर बन्दी का खेल पक्का दिखाई देता है।
वार्डो में चल रहे सीसी रोड नाली , ओर अन्य निर्माण कार्य बनने के साथ ही दम तोड रहे हे, वही आधे करोड़ से अधिक की लागत की स्थापित अटल बिहारी वाजपेई की मूर्ति आज भी बखूबी हुए भारी भरकम भ्रष्टाचार की कहानी कह रही हे, वही अटल कालोनी में बना आधे करोड़ का रोड भी स्वयं ही अपने में हुए भ्रष्टाचार को बता रहा हे,सड़को की हालत यह हे , की दोनो तरफ की किनारों को छोड़ बीच में जिस तरह से पोल रख कर बनाए गए हे। यह बखूबी खेल कई समझौतों का हवाला देता हे ।
निर्माण कार्यों में उपयोग हुई घटिया निर्माण सामग्री, के कारण या तो बनने के एक या दो महीनों में ही समाप्त जैसे हो गए हे या खत्म होने की तैयारी में लग गए हे। इसमें मजेदार बात यह हे कि इस सारे खेल कमाल में वार्डवासी पूरी तरह से मोन साधे हुए हैं। इससे पता चलता हे कि जिम्मेदारों का नजरबंद का खेल एकदम पक्का है।हमारी उत्सुकता और बड़ी फिर
हमने कार्यालय में ओर अंदर झांकने का प्रयास किया तो आंखें फटी रह गई, क्योंकि ओर भी बहुत रोचक नजारे दिखाई दिए
कागजों को पलटा तो पता चला कि एक मामला सिकंदर बाजार स्थित एक मकान का हे जिसका नामांतरण में जिस तरह से कलाकारी बताने का कार्य किया हे उसने सोचने पर मजबूर कर दिया हे कि क्या ऐसा भी हो सकता हे? खलील मियां की प्रापर्टी उसके मूल वारिसों को नजर अंदाज कर उसके किसी रिश्तेदार के नाम पर ही नामांतरण कर दी, और बहाना यह कि हमने विधिक सलाह के आधार पर यह सब कुछ किया ।
अरे मियां सलाहकार भी भला आपके मंसूबों से कैसे अलग हो पाएगा ?
ओर यही हुआ सलाह देने वाले ने भी इन जिम्मेदारों के सुर में सुर मिला दिया, ओर हवाला मुस्लिम एक्ट का,जिसमें मौखिक वसीयत को आधार मान लिया , जबकि हकीकत यह हे जिस व्यक्ति ने हिबनामा मौखिक लिखा हे , वह एक पड़ा लिखा होकर वकालत करता था , अब आप ही बताओ क्या मौखिक आधार पर की गई वसीयत विश्वशनीयता सकती हे ?पर वही हुआ जो जिम्मेदारों की रणनीति में था , यही वजह रही कि मूल वारिसों की समय अनुरूप इकतला के बाद भी वही किया जो जिम्मेदारों के मन में था बस फिर क्या था सबके मन की हो गई, खूब लड्डू खाए और खिलाए ।वैसे भी बुजुर्गों का कहना हे कि किसी भी खेल जब लालच सिर पर चढ़ जाता हे तो विवेक शून्य हो ही जाता हे, यहां भी ऐसा ही नजर आता हे ,? कागजों में ऐसा खेल खेल गया कि मूल वारिसों की ओर किसी ने ध्यान ही नहीं दिया ।
खेर वैसे भी मामला न्यायालय की शरण में जा चुका हैं, ओर विश्वास हे हकीकत सामने आएगी और हकदारों को उनका हक जरूर मिलेगा । पर नपा ने जिस तरह से नामांतरण का खेल खेला हे देखकर लोग तरह तरह के कयास लगा रहे हे ओर विश्वशनीयता पर भी उंगली उठा रहे हैं।
यह अनोखा खेल देखकर हम ओर चौकन्ने हो गए, नजरों को ओर आधी गड़ाई, फिर क्या था कार्यालय में एक ओर हैरतअंगेज खेल दिखाई दिया जो खूब फलफूल कर परवान चढ़ रहा हे।
इस खेल में कर्मचारी ही कथित नामों से ठेकेदारी कर भारी नावा पीट रहे हैं,यही बड़ा कारण हे कि कर्मचारियों जब ठेकेदार होकर खेल कमाल कर रहे हे तो फिर मूल ठेकेदार भी पीछे क्यों रहे, बस सब खुलकर मनमानी कर रहे हे ओर निर्माण कार्यों का हाल यह हे कि बनते बनते ही दम तोड़ते हुए अपने घटियापन की कहानी स्वयं कह रहे हैं।
लिखने को बहुत कुछ हे पर आज बस इतना ही । फिर मिलेंगे नपा की एक ओर आधी हकीकत , आधे फसाने के साथ ।
