भगवान पार्श्वनाथ को 23 किलो का निर्वाण लाडू चढ़ाया
*दिनेश शर्मा आष्टा हलचल*
आष्टा। नम्रता ही मनुष्य का आभूषण है, पूर्ण उदारता ओर ओछेपन से रहित वाणी ही हमें इस लोक और परलोक में सुख प्रदान करती है । उक्त उद्गार श्री चंद्रप्रभ दिगंबर जैन मंदिर अरिहंत पुरम में चातुर्मास हेतु विराजमान श्रमण मुनि 108 श्री विनंद सागर जी मुनिराज ने धर्म को संबोधित करते हुए कही । 23 वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ के निर्वाण महोत्सव पर श्री कल्याण मंदिर विधान का आयोजन किया गया । भगवान को 23 किलो का निर्वाण लाडू चढ़ाया गया।आज के विधान के पुण्यार्जक परिवार श्रीमती निर्मला जैन, शैलेन्द्र जैन (शिल्पा), श्रीमती अंजली जैन, अर्चित जैन, वेदी जैन सदासुखि परिवार रहे । संगीतमय विधान पूजन का सभी ने भक्ति भाव के साथ आनंद लिया। तत्पश्चात श्री पार्श्वनाथ भगवान को 23 किलो का निर्वाण लाडू समर्पित किया गया । चित्र अनावरण, दीप प्रज्वलन के साथ कार्यक्रम की शुरुआत हुई। श्री चंद्रप्रभ बालिका मंडल द्वारा बहुत सुंदर व मनमोहक मंगलाचरण प्रस्तुत किया गया । पुण्यार्जक परिवार द्वारा मुनिश्री के पाद प्रक्षालन किया गया व शास्त्र भेंट किया गया । मंदिर समिति द्वारा पुण्यार्जक परिवार का तिलक लगाकर व दुपट्टा पहनाकर बहुमान किया गया । इस अवसर पर जैन धर्म के 23 वे तीर्थंकर की मोक्ष स्थली श्री सम्मेद शिखर की सुंदर झाँकी का निर्माण समाज के नवयुवकों द्वारा किया गया । जिसके लोकार्पण का सौभाग्य विधान पुण्यार्जक परिवार को प्राप्त हुआ । मुनिश्री ने अपने आशीष वचन में क्षमा का मार्मिक वर्णन करते हुए क्षमा को वीरो का आभूषण बताया । कमठ के जीव द्वारा लगातार 10 भावों तक भगवान पार्श्वनाथ के जीव पर उपसर्ग किया गया । फिर भी उन्हें क्षमा प्रदान किया गया । आज यदि हम भी इस प्रकार क्षमा को धारण कर ले तो हमारे जीवन मे सुख, शांति और समृद्धि आ सकती है ।अरिहंत पुरम अलीपुर के युवा बच्चों ने विगत चार दिनों कि मेहनत से श्री सम्मेद शिखरजी की बहुत सुंदर झांकी बनाई, जिसका अनावरण श्री शैलेंद्र जैन को सौभाग्य प्राप्त हुआ।
